Saturday, September 27, 2025

निडर बेटी के डरपोक पापा ने आखिरकार वैक्सीन लगवाई

 

1.

बेटी- पापाजी ये इतनी सुरसुरी कहां से आ रही हैं?
पापा- पता नहीं. वैसे सुरसुरी से याद आया...
बेटी- बस रहने दो..

पापा- सुनो तो सही. 

बेटी- हमें पता है. आपके अंदर का इंसान जाग गया होगा! 

पापा- अरे भई सुनो तो सही.
बेटी- चलो सुनाओ.
पापा- मैं कल जब बाथरूम तो देखा बाथरूम की सीट पर एक सुरसुरी उलटी पड़ी, छटपटा रही थी. मैंने सोचा कि कहीं ये ऐसे ही छटपटाते कहीं पानी में गिर गई तो समझो गई काम से. मैं कमरे में आया कागज को चम्मच बनाया. सुरसुरी को उस पर बैठाकर कूड़े की बाल्टी में डालने के लिए छज्जे पर ले आया. फिर ध्यान आया कि कहीं कूड़ा निकालते वक्त ये मर गई तो. फिर क्या था कागज पर से उस सुरसुरी को छज्जे पर ही गिरा दिया और कागज कूड़े की बाल्टी में डाल दिया.
बेटी- बहुत अच्छा किया. अब वो उधर से कमरे में आ जाएगी.
पापा- तो क्या हुआ!

बेटी- क्या हुआ मतलब मुझे दिक्कत होती है. मैं सोचती हूं अगर आप जानवर होते और जंगल में रहते तो कैसे रहते? आपके लिए तो जीना मुश्किल हो जाता है. कैसे रहते आप जंगल में?


2.

~निडर बेटी के डरपोक पापा ने आखिरकार वैक्सीन लगवाई ~


पापा- बच्चू अब तो कुछ राज्य सरकारें बिना वैक्सीन वालों को पब्लिक प्लेस में जाने से रोकने वाली हैं.

बेटी- हां पापाजी मैंने भी पढ़ा था. अगर ऐसा हुआ तो मेरा स्कूल तो इसे सबसे पहले लागू करेगा.

पापा- फिर क्या करें? आपके स्कूल या पढाई के चक्कर में इधर उधर जाना हुआ तो कैसे करेंगे?

बेटी- करना क्या है. अपने डॉक्टर दोस्तों से बात करो कि ऐसी-ऐसी बात है. मुझे क्या करना चाहिए? जो वे कहेंगे, वो हम कर लेंगे.

पापा- पर बच्चू...

बेटी- अरे पापाजी. जो होगा देखा जाएगा. आप पहले बात तो करो...


अगले दिन


पापा- बच्चू वे तो कह रहे हैं कि लगवा लो. डरने की जरूरत नहीं है.

बेटी- बस. मैं तो पहले ही कह रही थी कि डरना-वरना छोड़ो. बस हमने सरकारी में जाकर नहीं लगवानी. क्योंकि वहां भीड़ होती है. और...

पापा- ठीक है. अब लगवाते ही हैं. जो होगा देखा जाएगा.

बेटी- देखना आपको कुछ नहीं होगा. आपको तो बुखार भी नहीं आएगा.

पापा- ओके.


रात 12 बजे.


बेटी- पापाजी रजिस्ट्रेशन कर दूं.

पापा- अब रात को.

बेटी- जो काम कल करना वो आज रात को ही सही.

पापा- ओके

बेटी- हो गया..बस एक दिक्कत स्लॉट नहीं आपकी उम्र का.

पापा- देखा! मैं ना कहता था. कुछ-कुछ गड़बड़ होगा.

बेटी- पापाजी कूल. स्लॉट भी मिल जाएगा. क्या पता सुबह तक मिल जाए.

पापा- अब इस बात की टेंशन.

बेटी- अरे पापाजी. फिर से. अच्छी बात सोचते-सोचते सो जाओ. कुछ नहीं तो उस किताब के बारे में सोचते हुए सो जाओ, जिसके बारे में मुझे बता रहे थे. नींद आ जाएगी. सुबह का सुबह देखेंगे.

पापा- ओके.


अगली सुबह


पापा- बच्चू अब भी स्लॉट नहीं मिल रहा.

बेटी- एक मिनट मैं देखती हूं.मिला-मिला. लेकिन ये तो दो जगह ही है पूरी दिल्ली में. वो भी इतनी दूर.

पापा- कोई नहीं पापाजी. मिल रहा है तो जल्दी से बुक करो.

बेटी- ओके. देखा हो गया. आप यूं ही हाय-तोबा मचा रहे थे.


जाने से पहले


पापा- बच्चू चलता हूं.

बेटी- सब समान रख लिया.

पापा- हां.

बेटी- ये रख लिया. वो रख लिया. मोबाइल ले लिया. पैसे रख लिए. मास्क कौन से वाले लगाए हैं?

पापा- एक सर्जरी वाला, बाकी दो और.

बेटी- लोग एक मास्क भी नहीं लगा रहे है. और आप तीन-तीन

पापा- हम हम हैं. वो वो हैं

बेटी- बाय-बाय.

पापा- बाय-बाय.


घर आने पर


बेटी- लग गया.

पापा- हां.

बेटी- दर्द तो नहीं हो रहा.

पापा- ना.

बेटी- गुड.

~04.01.22~


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