Saturday, September 27, 2025

'चुनमुन बेटी' को जन्मदिन मुबारक

बेटी का जन्मदिन आज है. बेटी कुछ दिन पहले कई सालों के बाद कह रही थी कि पापाजी इस बार मेरे जन्मदिन पर क्या गिफ्ट दोगे? मैंने कहा कि देखते हैं. वैसे जब आपकी पॉकेट भरी-सी हो तो आदमी ना जाने क्या-क्या सोचता है. ये गिफ्ट देंगे. जन्मदिन पर ये करेंगे, वो करेंगे. वरना तो कहता ही कि देखते हैं. दरअसल मुझे लगता है कि इस बार बेटी कुछ अच्छा-सा जन्मदिन मनाना चाहती थी. अपने नए कमरे को सजाना चाहती थी. मैं तो ऐसे मामलों में आगे ही रहता हूं 😍 खैर केक-वेक तो आएगा ही. जन्मदिन मनाएंगे ही. रही गिफ्ट की बात तो पहले मन था कि बेटी को टेबल लैंप की जररूत सी है. वही मंगवा लेता हो. गिफ्ट का गिफ्ट हो जाएगा. और उसकी जरूरत भी पूरी हो जाएगी. लेकिन फिर जब टेबल लैंप ऑनलाइन ढूंढा तो वैसा टेबल लैंप मिला ही नहीं. जैसा मैं देना चाहता था यानि जैसा मुझे लगता है कि उसको जरुरत है. फिर सोचा चलो 'अरुंधति रॉय जी' की नई किताब आई है. वही दे देते हैं. इस गिफ्ट में मेरा भी लालच था कि इस गिफ्ट के बहाने में हम भी इस किताब को पढ़ लेंगे! लेकिन फिर ये प्लान भी ड्राप कर दिया. क्योंकि लालच बुरी बला होती है 😎


फिर एक रात अचानक ही ख्याल आया कि बेटी और मेरी बातचीत के कुछ टुकड़े लिखे पड़े हैं. जोकि मैं फेसबुक पर गाहे-बगाहे डालता रहता था. क्यों ना उन्हीं को एक ब्लॉग बनाकर डाल दिया जाए. साथ में उन बातचीत से संबधित चित्र भी ढूंढकर लगा दिए जाए. बेटी के बचपन से लेकर अब तक की यात्रा का एक छोटा विवरण हो जाएगा. बेटी पहले क्या सोचती थी. बेटी अब क्या सोचती है. याद के तौर पर रह जाएगा. कभी फुरसत में हुआ करेंगे तो बैठकर पढ़ा-देखा करेंगे. हंसा करेंगे 😆उसकी उस वक्त की गई समझदारी भरी बातों पर गर्व करा करेंगे. वैसे लोग एल्बम रखते हैं. हम ब्लॉग रखेंगे! उसमें क्या है. हम नए जमाने के पिता जो ठहरे 😍 फिर जब हम दोनों की उन छोटी-छोटी बातों को पढ़ा तो उसमें पाया कि बेटी की बातचीत में तो मासूमियत है. मजाक है. हाजिर जवाबी है.और कई जगह समझदारी भी है. यानि कुल मिलाकर एक अच्छी जीवन यात्रा है उसकी. बस फिर क्या था गिफ्ट फाइनल. 'ब्लॉग' गिफ्ट दिया जाएगा! ओए बल्ले-बल्ले 😍

फिर क्या था. एक पुराने ब्लॉग का नाम बदला. उसमें चंद पोस्ट ही थीं, उन्हें डिलीट किया. और फिर 'बातें-चुनमुन-की' नाम का एक ब्लॉग 'ब्लागस्पाट' पर बना डाला. जिसमें 34-35 पोस्ट बन गईं. यानि एक छोटी-सी एल्बम, एक छोटी-सी किताब, एक छोटी-सी फिल्म, एक छोटा-सा ब्लॉग! फिर दिल को लगा यार इससे अच्छा गिफ्ट क्या ही हो सकता है. हो सकता है इस गिफ्ट को कोई ना समझ पाए. लोग कहे कि ये भी कोई गिफ्ट होता है. इससे अच्छा तो ये दे देना चाहिए था. वो देना चाहिए था. खैर फिर लगा मेरे दिल ने जो कहा वो मैंने कर दिया. मुझे खुशी मिली. बाकी बेटी को भी पसंद आएगा. ये पक्का है. बाकी क्या है. आदमी का मन जो करे वो उसे कर दे. बस. और फिर उसके करने से जो खुशी मिलती है, शायद वही असल खुशी होती है. शायद यही जीवन का सुख भी होता है. शायद जीवन ऐसा ही होता है कि सोचो कुछ और फिर करो कुछ. पॉकेट का क्या है. आज खाली-सी है. कल भर जाएगी. जब भर जाएगी. तब वैसा कर लेंगे. जैसा आज नहीं कर पाएंगे. बाकी एक बेटी का पिता. अपनी बेटी को जन्मदिन मुबारक कहता है. और रब्ब से दुआएं मांगता है कि बेटी खुश रहे, स्वस्थ रहे. और अपने ख़्वाबों को पूरा करती रहे. बस. एक बार फिर से जन्मदिन मुबारक.

पापाजी पता है जब आप किसी चीज या आदमी को पसंद करने लगते हैं तो वो चीज अपनी और इंसान अपने ही लगने लगते हैं...

आखिरकार कल कनॉट प्लेस जाकर बेटी के मोबाइल की सिम बदलवा ही दी. आप सोच रहे होंगे कि एक सिम के लिए सीपी. दरअसल हम बाप-बेटी को घूमने का बहाना चाहिए बाकी बात कुछ यूं भी है कि पहले बेटी अपने पापा की नजरों से कनॉट प्लेस को देखा करती थी. लेकिन पिछले दो एक सालों से बेटी खुद ही अकेले आने-जाने लगी है. तो अपनी नज़रों से दुनिया खासकर दिल्ली को देखने लगी है. बल्कि यूं कहूं कि कल बेटी मुझे कनॉट प्लेस में घूमा रही थी. एक बात बताऊं तो आप चौंक जाएंगे. पिछले करीब तीस सालों से कनॉट प्लेस जा रहा हूं लेकिन आजतक कनॉट प्लेस के ब्लाक के बारे में नहीं पता था. यानि कौन ब्लाक किधर है ये मुझे नहीं पता था. ये कल बेटी की वजह से पता लगा. पहले सिम बदलवाने का काम किया. सिम मिल तो गई लेकिन उन्होंने कहा कि इसे एक्टिव होने में करीब ४ घंटे लगेंगे, अगर इस समय में सिम एक्टिव नहीं होती है तो आपको फिर से यही आना पड़ेगा. मैं बार-बार आ नहीं सकता तो 4 चार घंटे यही बिताने थे.

इसी कारण बेटी कहने लगी कि चलो पापाजी 'ऑक्सफ़ोर्ड बुकस्टोर' चलते हैं. हम उधर की ओर चल दिए. कई सालों के बाद जाना हुआ था 'ऑक्सफ़ोर्ड बुकस्टोर'. पहले की अपेक्षा अब थोड़ा खुला-खुला सा लग रहा था. घुसते ही बेटी चहक सी गई. फिर इसके बाद इसने ना जाने कितनी किताबों और लेखकों से परिचय कराया, जिनके बारे में मुझे पता नहीं था. सबके सब विदेशी लेखक थे. एक दो नाम जो याद रह गए. 'Fredrik Backman', 'Haruki Murakami', 'Khalid hoosseini', 'Kristin Hannah' आदि आदि.


बल्कि बेटी 'Before the Coffee Gets Cold-Toshikazu Kawaguch (आजकल इसी किताब को पढ़ रही है.) किताब को उठाकर मुझे दिखाते हुए बोली,' पापाजी देखो मेरी किताब भी यहां है.'


मैं बीच ही में बोल उठा,' ये किताब आप ऐसे दिखा रही है जैसे आप ही की हो.' वो कहां रुकने वाली थी झट से बोलीं,' ओ हो पापाजी! पता है जब आप किसी चीज या आदमी को पसंद करने लगते हैं तो वो चीज अपनी और इंसान अपने ही लगने लगते हैं.'

 

'हां ये बात तो है. जैसे शाहरुख खान मुझे अपना-सा लगता है. उनकी फिल्म हीट हो जाए तो अच्छा लगता है. बेशक वो फिल्म मैंने देखी हो या ना देखी हो.' फिर वो बीच-बीच में अपनी पसंद की किताबें दिखाती रही.


फिर एक जगह रुकी और बोली,' पापाजी ये देखो 'Rom-Com Books'.' 'Rom-Com Books' मतलब.' मैं बोला. ' सच आपको 'Rom-Com Books' का नहीं पता. 'Rom-Com Books' मतलब 'रोमांटिक कॉमेडी' वाली किताबें. 'वो बोली.


सच मुझे आज से पहले Rom-Com किताबों का नहीं पता था. और सच बताऊं तो मैंने आजतक विदेशी लेखकों की कम किताबें ही पढ़ी हैं. लेकिन हां हिंदी के लेखकों को तो खूब पढ़ा है. और उनका परिचय बेटी से भी कराया है. उनके किस्से बेटी को सुनाएं भी हैं. लेकिन तब जब उसे इतनी समझ नहीं थी, जितनी अब है. इसे यूं ही भी कह सकते हैं. मैंने पहले बेटी को हिंदी के लेखकों से मिलवाया था. और बेटी अब विदेशी लेखकों से परिचय करवा रही थी.


फिर बाद में हम दोनों पेट पूजा के लिए 'सरवाना भवन' की तरफ निकल गए.

~17.5.2025~


पापाजी वो टीचर हों या फिर प्रोफेसर उन्हें अपना स्माइली फेस रखना चाहिए

 1.

पापा- कहां तक पहुंचे?

बेटी- कश्मीरी गेट.

पापा- अभी तक यहीं पहुंचे?

बेटी- वो मम्मी ने आइसक्रीम ले ली थी ना.

पापा- इतनी सर्दी में कौन आइसक्रीम खाता है!

बेटी- वो मम्मी ने ले ली थी ना. मुझे भी भूख लगी थी. 


2.

सीपी में खादी भंडार से थापर की तरफ आते हुए एक छोटे से स्टाल पर खीरे, ककड़ी कटे हुए लगे थे. उन्हें देख बेटी बोलीं. 'पापाजी खीरे खा लो.'

मैं बोला,' अब तो जमाने हो गए ऐसे कटे खीरे, मूली खाए हुए. किसी जमाने में हम खूब खाते थे.' मतलब ये कि 2020 के पहले खूब खाते थे.

तपाक से बेटी बोलीं,' पापाजी, अब तो पुराने जमाने का फैशन भी लौटकर आ रहा है. आप भी पुराना ज़माना लौटा लाओ.'

~12.04.25~


3.

पापा- अंकल जी के सवाल का जवाब देते वक्त आप आज थोड़ा घबरा गए थे बच्चू. वरना तो सही से बात कर लेते हो. 

बेटी- पता है पापाजी. वो टीचर हों या फिर प्रोफेसर, उन्हें अपना स्माइली फेस रखना चाहिए. मैं उनके चेहरे को देख डर गया था. फिर मैं जवाब देते वक्त जो बात कहना चाह रहा था, वो नहीं कह पाया. प्रोफेसरों को इतनी सीरियस नहीं होना चाहिए. तब तो बिल्कुल नहीं, जब किसी से अकेले में बात कर रहो. ठीक है क्लास लेते वक्त सीरियस हो जाओ.


[ दिल्ली विश्वविधालय के एक प्रोफेसर से मुलाक़ात के बाद.]


4.

पापा- कुछ लिखा है. सुनोगी.

बेटी- क्या लिखा है?

पापा- ख़त (एक तुकबंदी की थी बस.)

बेटी- किसको?

पापा- लड़की को!!

बेटी- जिस उम्र में लोग ये सब करने से मना करते हैं. आप उस उम्र में ये सब लिख रहे हो.

पापा- हा हा. अरे आप पूरी बात तो सुनो. 


( वो पूरी बात सुने बिना चली गई.)

~07.07.25~

पापाजी जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं वैसे-वैसे चीजों के पाने का उत्साह कुछ कम होता जाता है

1.

बेटी को Dell का लैपटॉप मिल गया. वैसे उसका जन्मदिन अगले महीने है. लेकिन जन्मदिन का गिफ्ट अगस्त महीने में ही मिल गया. पर जब वह लैपटॉप खरीदने के बाद घर आई तो कहने लगी कि ' पापाजी जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, वैसे-वैसे चीजों के पाने का उत्साह कुछ कम होता जाता है.'

खैर एक साल पहले लैपटॉप के लिए सोचा जा रहा था. खरीदा आज गया है.

2.

बेटी- पापाजी मैं जब भी किचन में जाती हूं तो 'नाचोज' (कोई चिप्स है.) मुझे देखता रहता है😄


[ पिछले एक हफ्ते से बेटी खांसी-बुखार की वजह से तली हुई चीजें नहीं खा पा रही है.]


3.


पापाजी इस फोटो में ऐसा लग रहा है जैसे आप मुझे नहीं, मैं आपको शॉपिंग कराने लाई हूं 😍~11.11.24~


4.


बेटी- ( जुराब उतारते हुए.) ना जाने वो लोग कौन होते हैं, जो जुराब पहनकर सोते हैं. मेरे से तो ना सोया जाए.

पापा- मैं हूं ना.

बेटी- मैं आम लोगों की बात कर रही हूं, आपकी नहीं!

पापा- हा हा ! 

[ बेटी का मानना है कि मैं आम इंसान नहीं हूं. लेकिन फिर मैं क्या हूं. उस पर कभी बात नहीं हुई. हुई होगी फिलहाल मुझे याद नहीं. ]

~19.12.24~




पापाजी आपको क्या लगता है इतने सारे बर्तन बिना गाने सुने धूल जाएंगे!

10.

अभी दो मिनट पहले मैं हुड पहने छज्जे और गैलरी में इधर-उधर घूम रहा था.

बेटी- क्या पापाजी इधर-उधर घूम रहे हो!

पापा- क्या करूं बेटा चैन ही नहीं मिल रहा. बेचैन-सा हो रहा हूं.

बेटी- पापाजी चैन इधर-उधर घूमने से नहीं मिलेगा. अपने अंदर झांको मिल जाएगा. देखो वो बच्चा आइसक्रीम खा रहा है और आप....

 ~21.10.23~


11.

पापा- और बच्चू मोबाइल पर गाने लगा रहे हो क्या?

बेटी- आपको क्या लगता है इतने सारे बर्तन बिना गाने के मंज (धूल ) जाएंगे!


[ आज बेटी ने रसोई संभाली हुई है.]

~22.10.23~


12.


पापा- साढ़े 10 बज गए.

बेटी- अभी तो 11 भी बजेंगे.

पापा- बच्चू कल रात जब नींद नहीं आ रही थी तो कुछ लिखा था.

बेटी- पता है पापाजी आज मेरी कुछ सहेलियां गरबा करने आई.पी एक्सटेंशन गई हैं.

पापा- पता नहीं मुझे गरबा कुछ समझ और पसंद नहीं आया.

बेटी- पसंद-वसंद जैसा कुछ नहीं होता. बस लोग माहौल को फील करने जाते हैं.

पापा- आपने ये बात मेरे लिखे को सुनने से बचने के लिए कही है ना!

बेटी- हा-हा!

पापा- ज्यादा बड़ा नहीं लिखा था बस.

बेटी- अभी तो पापाजी मैंने कपड़ों पर प्रेस भी नहीं की.

पापा- फिर काट दी मेरी बात.

बेटी- हा-हा!

~22.10.23~


13.


रात को सोने से पहले.


पापा- बच्चू बड़े दिनों के बाद एक फिल्म पसंद आई है.

बेटी- ओके.

(बेटी बात करने के मूड में नहीं.)


~सुबह जब बेटी कोचिंग क्लास के लिए तैयार हो रही थी~


पापा- रात को मैं जिस फिल्म की बात कर रहा था. उसकी कहानी बताऊं.

बेटी- मेरे पास कहानी सुनने का टाइम नहीं है.

पापा- अरे पूरी कहानी नहीं, जो ट्रेलर में देखी वो. 3 तारीख से आ रही है. वो भी सिनेमा हॉल में.

बेटी- तो देख आओ.

पापा- देखते हैं.

बेटी- जब कभी आप शाहरुख खान से मिलोगे तो उन्हें क्या मुंह दिखाओगे. उनकी एक फिल्म भी कभी आते ही नहीं देखी और ये Unknown-सी फिल्म देखने की सोच रहे हैं!

पापा- हा हा!


*शाहरुख खान हमारे पसंदीदा अभिनेता हैं. वो अलग बात है कि इसके बाद भी उनकी बहुत फ़िल्में नहीं देखी. चंद फिल्मों के अलावा. लेकिन छूटपन में सबके विरोध के बाद भी शाहरुख का पोस्टर कमरे से नहीं हटाया था.

फिल्म थी- 'three of us'

~28.10.23` 


14.


~सुबह-सुबह~


पापा- बच्चू सुबह उठने के कितने अलार्म लगाते हो! मेरी नींद खुल जाती है.

बेटी- बस चार. ये कोई ज्यादा हैं!!

पिता- हा हा!

~05.11.2023~


15.


बेटी- पापाजी आप ना अनिल कपूर की तरह अपनी दाढ़ी काली करवा लो.

पापा- क्यूं भई?

बेटी- वो मेट्रो में लोग आपकी सफेद दाढ़ी देखकर आपको सीनियर सिटीजन समझ बैठते हैं. और फिर अपनी सीट आपको ऑफर करने लगते हैं.


*सच में ये कई बार मेट्रो में मेरे साथ हो चुका है.

 ~05.12.23~


पापाजी गाने और फिल्म दिल बहलाने के लिए होते हैं नाकि दिल लगाने के लिए

6.

~कमरे में घुसते ही सुना~

मां- पापा की नजर लग गई.

पापा- क्या हुआ भई?

मां- इसके पेपर का (बेटी) सेंटर नॉएडा पड़ गया. जोधपुर पड़ता तो एक दिन पहले जाते दो दिन रूककर आते. 

बेटी- मम्मी चिंता ना करो. मैंने दिल्ली में ही घूमने और खाने की जगह ढूंढ ली है.

मां- दिल्ली में!

बेटी- हां दिल्ली में  'मजनू का टीला'.


[ वैसे घूमने के चक्कर में ही बेटी ने पेपर के सेंटर में दूसरा आप्शन जोधपुर भरवाया था.]

~06.06.2023~


7.


कल गुड नाईट कहने से पहले हम बाप-बेटी जवान फिल्म के गाने की चर्चा कर रहे थे. क्योंकि शाहरुख उसे भी पसंद है.


बेटी- जवान फिल्म का गाना पसंद आया?

पापा- ये कोई गाना है! मुझे ऐसे गाने और ऐसी फ़िल्में पसंद नहीं आतीं. चाहे वो 'पठान' हो या फिर ये 'जवान'.

बेटी- ये बात तो है कि ये गाने इतने अच्छे नहीं हैं. बस एक डांस स्टेप को छोड़कर. लेकिन आप का पता क्या है. आप गाने और फिल्म दिल लगाकर देखते हो. और गाने और फिल्म दिल बहलाने के लिए होते हैं नाकि दिल लगाने के लिए.

~30.08.23~


8.


पापाजी मैं आपको कितनी बार कह चुकी हूं कि गाने और फ़िल्में दिल बहलाने के लिए होती हैं नाकि दिल लगाने के लिए.

[अभी एक गाने के पसंद ना पसंद के बाद.]

~12.09.23~


9.


बेटी- पापाजी पता है कल क्या हुआ?

पापा- क्या हुआ?

बेटी- वो मेरे क्लास का वो लड़का है ना. वो पूछने लगा कि तुम्हारी जाति क्या है? मैं बोली तुम गेस करो. मैं दावे के साथ कह सकती हूं. सही गेस नहीं कर पाओगे! फिर वो सोचकर बोला कि 'तुम बनिए हो'. मैं बोली और सोच लो. पापाजी आपके साथ भी तो हुआ होगा ऐसे ?

पापा- हां मेरे साथ भी बहुत होता था. फिर आगे क्या हुआ?

बेटी- मैं बोली कि हम लोग 'गुर्जर' हैं. तो पता है पापाजी वो लड़का एकदम से दंग रह गया. कुछ सैंकंड तो बस देखता रहा.


( हम दोनों बाप-बेटी खूब हंसते रहे. )


फिर बोला पर अंकल तो पूरे बनिए लगते हैं.


( फिर हम दोनों बाप-बेटी खूब जोरों से हंसने लगे)


[ दरअसल मेरे साथ भी ऐसा ही होता था.और ऐसा ही अब बेटी के साथ हो रहा है ]

~01.10.23~


पापाजी दुःख बैकग्राउंड की तरह बड़े-बड़े होते हैं और सुख स्टार की तरह छोटे-छोटे होते हैं

1.

~आजकल बेटी के 12 वीं कक्षा के बोर्ड के पेपर चल रहे हैं. आज उसका 'रसायन विज्ञान' का पेपर था~


बेटी- पापाजी मैं जब पेपर देने स्कूल में चली जाती हूं तो आप बाहर बोर नहीं होते. तीन घंटे बाहर बैठकर क्या करते हो?

पापा- कुछ खास नहीं. थोड़ा इधर-उधर पैदल टहल लेता हूं बस.

बेटी- कल आप एक काम करना.

पापा- क्या?

बेटी- कई साल हो गए पनीर वाली जलेबी खाए. ऐसा करना आसपास में कोई हलवाई की दुकान तो होगी ही. पनीर की जलेबी ले आना. आपका टाइम भी पास हो जाएगा. मेरे को पनीर की जलेबी खाने को भी मिल जाएगी.

 

2.


बेटी- अब मुझे लगता है कि दुःख बैकग्राउंड की तरह बड़े-बड़े होते हैं और सुख स्टार की तरह छोटे-छोटे होते हैं. 

~13.03.23~


3.

बेटी- पापाजी पेपर ख़त्म होने के बाद मैं किसी दिन सहेलियों के साथ सीपी घूमने जाऊंगी.

पापा- ओके. पर घूमने का प्लान शनिवार को रखना.

बेटी- क्यों?

पापा- शनिवार को जाओगे तो मैं आपके साथ चल पडूंगा. मैं कॉफ़ी हाउस चला जाऊंगा. और आप सहेलियों के साथ सीपी घूम लेना और फिर बाद में दोनों साथ-साथ घर आ जाएंगे.

बेटी- पापाजी ये कोई बात हुई. आखिर कब तक. अकेले जाने की शुरुआत आज नहीं तो कल करनी है ही. क्यों ना पेपरों के बाद से कर दें.

पापा- ठीक है भई.


~दो दिन बात~


पापाजी आज तो मौसम कह रहा है कि घूम लो. और बेटी सीपी घूमने चली गई.

~02.04.23~    


4.


पापा- बच्चू कल का कैसा करना है. मम्मी और मैं दोनों ही आपको छोड़ने नहीं जा पाएंगे.

बेटी- आप बताओ कैसे करना है. मुझे तो नहीं समझ आ रहा...अच्छा एक काम तो हो सकता है. यहां मेट्रो तक तो मम्मी छोड़ ही देगी. और उधर से?

पापा- उधर से. या तो पैदल ही निकल जाना. अगर देखे कि मेट्रो स्टेशन के बाहर भीड़ नहीं और सर्विस लेन पर भी इक्का-दुक्का लोग ही हैं तो रिक्शा ले लेना. 

बेटी- वो तो मैं ले लूंगी लेकिन कोई-कोई रिक्शा वाला ड्रिंक किए होता है उसका? जब तक उसके रिक्शे में बैठो ना तब तक पता नहीं चलेगा!

पापा- एक काम करना, जो रिक्शे वाला नहाया-धोया से लगे यानि वेल ड्रेस हो. उस रिक्शेवाले को पूछ लेना.


~अभी कुछ देर पहले मैसेज आया~ 

Reached.

रिक्शा से या पैदल?

रिक्शा से.

गुड

~17.07.23~


 5.


बेटी- पापाजी आपका जमीर कैसे ALLOW कर गया.

पापा- क्यों क्या हुआ?

बेटी- मुझे खांसी है और आप हलवा बनवा रहे हो!

~20.05.2023~