बेटी का जन्मदिन आज है. बेटी कुछ दिन पहले कई सालों के बाद कह रही थी कि पापाजी इस बार मेरे जन्मदिन पर क्या गिफ्ट दोगे? मैंने कहा कि देखते हैं. वैसे जब आपकी पॉकेट भरी-सी हो तो आदमी ना जाने क्या-क्या सोचता है. ये गिफ्ट देंगे. जन्मदिन पर ये करेंगे, वो करेंगे. वरना तो कहता ही कि देखते हैं. दरअसल मुझे लगता है कि इस बार बेटी कुछ अच्छा-सा जन्मदिन मनाना चाहती थी. अपने नए कमरे को सजाना चाहती थी. मैं तो ऐसे मामलों में आगे ही रहता हूं 😍 खैर केक-वेक तो आएगा ही. जन्मदिन मनाएंगे ही. रही गिफ्ट की बात तो पहले मन था कि बेटी को टेबल लैंप की जररूत सी है. वही मंगवा लेता हो. गिफ्ट का गिफ्ट हो जाएगा. और उसकी जरूरत भी पूरी हो जाएगी. लेकिन फिर जब टेबल लैंप ऑनलाइन ढूंढा तो वैसा टेबल लैंप मिला ही नहीं. जैसा मैं देना चाहता था यानि जैसा मुझे लगता है कि उसको जरुरत है. फिर सोचा चलो 'अरुंधति रॉय जी' की नई किताब आई है. वही दे देते हैं. इस गिफ्ट में मेरा भी लालच था कि इस गिफ्ट के बहाने में हम भी इस किताब को पढ़ लेंगे! लेकिन फिर ये प्लान भी ड्राप कर दिया. क्योंकि लालच बुरी बला होती है 😎
फिर एक रात अचानक ही ख्याल आया कि बेटी और मेरी बातचीत के कुछ टुकड़े लिखे पड़े हैं. जोकि मैं फेसबुक पर गाहे-बगाहे डालता रहता था. क्यों ना उन्हीं को एक ब्लॉग बनाकर डाल दिया जाए. साथ में उन बातचीत से संबधित चित्र भी ढूंढकर लगा दिए जाए. बेटी के बचपन से लेकर अब तक की यात्रा का एक छोटा विवरण हो जाएगा. बेटी पहले क्या सोचती थी. बेटी अब क्या सोचती है. याद के तौर पर रह जाएगा. कभी फुरसत में हुआ करेंगे तो बैठकर पढ़ा-देखा करेंगे. हंसा करेंगे 😆उसकी उस वक्त की गई समझदारी भरी बातों पर गर्व करा करेंगे. वैसे लोग एल्बम रखते हैं. हम ब्लॉग रखेंगे! उसमें क्या है. हम नए जमाने के पिता जो ठहरे 😍 फिर जब हम दोनों की उन छोटी-छोटी बातों को पढ़ा तो उसमें पाया कि बेटी की बातचीत में तो मासूमियत है. मजाक है. हाजिर जवाबी है.और कई जगह समझदारी भी है. यानि कुल मिलाकर एक अच्छी जीवन यात्रा है उसकी. बस फिर क्या था गिफ्ट फाइनल. 'ब्लॉग' गिफ्ट दिया जाएगा! ओए बल्ले-बल्ले 😍
फिर क्या था. एक पुराने ब्लॉग का नाम बदला. उसमें चंद पोस्ट ही थीं, उन्हें डिलीट किया. और फिर 'बातें-चुनमुन-की' नाम का एक ब्लॉग 'ब्लागस्पाट' पर बना डाला. जिसमें 34-35 पोस्ट बन गईं. यानि एक छोटी-सी एल्बम, एक छोटी-सी किताब, एक छोटी-सी फिल्म, एक छोटा-सा ब्लॉग! फिर दिल को लगा यार इससे अच्छा गिफ्ट क्या ही हो सकता है. हो सकता है इस गिफ्ट को कोई ना समझ पाए. लोग कहे कि ये भी कोई गिफ्ट होता है. इससे अच्छा तो ये दे देना चाहिए था. वो देना चाहिए था. खैर फिर लगा मेरे दिल ने जो कहा वो मैंने कर दिया. मुझे खुशी मिली. बाकी बेटी को भी पसंद आएगा. ये पक्का है. बाकी क्या है. आदमी का मन जो करे वो उसे कर दे. बस. और फिर उसके करने से जो खुशी मिलती है, शायद वही असल खुशी होती है. शायद यही जीवन का सुख भी होता है. शायद जीवन ऐसा ही होता है कि सोचो कुछ और फिर करो कुछ. पॉकेट का क्या है. आज खाली-सी है. कल भर जाएगी. जब भर जाएगी. तब वैसा कर लेंगे. जैसा आज नहीं कर पाएंगे. बाकी एक बेटी का पिता. अपनी बेटी को जन्मदिन मुबारक कहता है. और रब्ब से दुआएं मांगता है कि बेटी खुश रहे, स्वस्थ रहे. और अपने ख़्वाबों को पूरा करती रहे. बस. एक बार फिर से जन्मदिन मुबारक.




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